आपको अपने जीवन में क्या करना है?
क्या आपकी दिलचस्पी महज किसी कैरियर की दौड़ में है, या आपकी मंशा यह जानने की है कि आप जीवन में वस्तुतः क्या करना पसंद करेंगे-ऎसा काम जिससे आपको सचमुच लगाव हो?
क्या आज की दुनिया में जीने के लिए महत्तवाकांक्षा और होड़ वाकई जरूरी है? व्यक्ति और समाज की समस्याओं जैसे कि गरीब, भ्रष्टाचार और हिंसा के बारे में आपकी क्या सोच है?
अपने माता-पिता और शिक्षकों के साथ आपके संबंध की बुनियाद क्या है? आग्यापालन? विद्रोह? या फिर समक्ष?
प्रेम और विवाह के प्रति आपका नजरिया क्या है?
ऊब, ईष्या॔, किसी के बर्ताव से चोट पहुंचना, मजा कायम रखने की चाह, डर और दुख-अपने जीवन के इन सवालों से आप किस तरह दो-चार होते हैं?
क्या हो सकता है मनुष्य के जीवन का उद्धेशय? मृत्यु, ध्यान धर्म और ईशवर के बारे में आपका क्या रुख है?
जीवन से जुड़े इन जीवंत प्रशनों का गहन अन्वेषण जे.कृष्णमूर्ति का बीसवीं सदी के मनोवैग्यानिक व शैक्षि्क विचार में मौलिक तथा प्रामाणित योगदान है। विशव के विभिन्न भागों में कृष्णमूर्ति जब युवावर्ग को संबोधित करते थे, उनसे वार्तालाप करते थे, तो वह उन्हें कोई फलसफा नहीं सिखा रहे होते थे, वह तो जीवन को सीधे-सीधे देख पाने की कला के बारे में चर्चा कर रहे होते थे-और वह उनसे बात करते थे एक मित्र की तरह, किसी गुरू या किन्हीं मसलों के विशेग्यों के तौर पर नही।
'आपको अपने जीवन में क्या करना है?' कृष्णमूर्ति की विभिन्न पुस्तकों से संकलित अपने प्रकार का पहला संग्रह है, जिसमें विशेषकर युवावर्ग को शिक्षा तथा जीवन के विषय में कृष्णमूर्ति की विशद दृष्टि का व्यवस्थित एवम क्रमबध्द परिचय प्राप्त होता है।
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