युद्ध और शांति (नवलकथा) - लेव तालस्तोय
Yudh Aur Shanti (Hindi Translation Of War And Peace)
लेव तालस्तोय उन्नीसवीं सदी के सर्वाधिक सम्मानित लेखकों में से एक हैं। उनका जन्म रूस के एक संपन्न परिवार में हुआ था। उन्होंने रूसी सेना में भर्ती होकर क्रीमियाई युद्ध (1855) में भाग लिया, लेकिन अगले ही वर्ष सेना छोड़ दी। लेखन के प्रति उनकी रुचि सेना में भर्ती होने से पहले ही जाग चुकी थी। उनके उपन्यास युद्ध और शान्ति (1865-69) तथा आन्ना करेनिना (1875-77) साहित्यिक जगत में क्लासिक रचनाएँ मानी जाती है।
धन-दौलत व साहित्यिक प्रतिभा के बावजूद तालस्तोय मन की शांति के लिए तरसते रहे। अंततः 1890 में उन्होंने अपनी धन-संपत्ति त्याग दी। अपने परिवार को छोड़कर वे ईश्वर व गरीबों की सेवा करने हेतु निकल पड़े। उनके स्वास्थ्य ने अधिक दिनों तक उनका साथ नहीं दिया। आखिरकार 20 नवंबर 1910 को अस्तापवा नामक एक छोटे से रेलवे स्टेशन पर इस धनिक पुत्र ने एक गरीब, निराश्रित, बीमार वृद्ध के रूप में मौत का आलिंगन कर लिया।
War and Peace is a novel by the Russian author Leo Tolstoy, first published in 1869. The work is epic in scale and is regarded as one of the most important works of world literature. It is considered as Tolstoy's finest literary achievement, along with his other major prose work, Anna Karenina
War and Peace delineates in graphic detail events surrounding the French invasion of Russia, and the impact of the Napoleonic era on Tsarist society, as seen through the eyes of five Russian aristocratic families. Portions of an earlier version of the novel, then known as The Year 1805,[4] were serialized in the magazine The Russian Messenger between 1865 and 1867.
Tolstoy himself, somewhat enigmatically, said of War and Peace that it was "not a novel, even less is it a poem, and still less a historical chronicle". Large sections of the work, especially in the later chapters, are philosophical discussion rather than narrative.[8] He went on to elaborate that the best Russian literature does not conform to standard norms and hence hesitated to call War and Peace a novel.
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