पतंजलि के योग–सूत्र, रहस्य–का–तर्कशास्त्र हैं। आप उसकी चाहे जैसी परतें खोलें फिर भी कुछ है, जो अनकहा और अनदेखा रह जाता है। श्री चंद्रप्रभु ने इन रहस्यों को मधुरता के साथ महावीर, बुद्ध, क्राइस्ट तथा सूफी आदि की परम्पराओं के साथ जोड़कर बड़ी सहजता और संजीदगी से The योग प्रस्तुत किया गया है। अगर वे रहस्यदर्शी दार्शनिक हैं, तब प्रेमपूर्ण हृदय के देवता भी हैं। श्री चंद्रप्रभ भारतीय एवं मानवीय जीवन–दृष्टि के संवाहक हैं. वे जीवन के शाश्वत सत्यों से स्वयं रू-ब-रू होकर हमें भी रू-ब-रू करवा रहे हैं। सूरज की किरण बनकर हमारे भीतर आशा और विश्वास का सवेरा जगाते हैं, तो चाँद की चाँदनी बनकर हमारे अज्ञान के अंधकार को दूर करते हैं। वे अपनी आत्मीयता में डुबाते हैं और बहुत सरलता से पार उतरने के लिए पतवार थमा देते हैं। वे हमें सच्चाई का सामना करने का पथ और साहस प्रदान करते हैं।
योग का प्रवेश–द्वार विकट है। यहाँ कठोर अनुशासन है, जिसमें योग नौका है और उतारने वाला गुरु है। दी योग से परमपूज्य निमंत्रण दे रहे हैं कि आओ और वह बीज बन जाओ, जिससे सुगंधित पुष्पों से भरे और फलों से लदे वृक्ष का उदय हो सके।
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महान जीवन–दृष्टा पूज्य श्री चंद्रप्रभ देश के लोकप्रिय आध्यात्मिक गुरुओं में अपनी एक विशेष पहचान रखते हैं। 10 मई 1962 को जन्मे श्री चंद्रप्रभ ने 27 जनवरी 1980 को संन्यास ग्रहण किया। वे विविध धर्मों के उपदेष्टा और महान चिंतक हैं। उनकी जीवन–दृष्टि ने लाखों युवाओं को एक नई सकारात्मक और क्रान्तिकारी दृष्टि दी है। उनके प्रभावी व्यक्तित्व, प्रवचन शैली और महान लेखन कला ने जनमानस को एक नया उत्साह, उद्देश्य और सद्मार्ग दिया है। उनकी 200 से अधिक पुस्तकें और 500 से अधिक प्रवचनों की वी.सी.डी. जन–जन में ईद का प्रेम, होली की समरसता और दीपावली की रोशनी बिखेर रही हैं। इनके द्वारा जोधपुर में स्थापित संबोधि–धाम बहुत लोकप्रिय है, जहाँ शिक्षा, सेवा और ध्यान–योग के माध्यम से मानवता के मंदिर में ज्योति से ज्योति जलाई जाती है।
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