Categories
Authors List
Discount
Buy More, Save More!
> Minimum 10% discount on all orders
> 15% discount if the order amount is over Rs. 8000
> 20% discount if the order amount is over Rs. 25,000
--
Dalit Crorepati (Hindi Translation Of Dalit Millionaires)
Milind Khandekar
Author Milind Khandekar
Publisher Penguin Books
ISBN 9780143419228
No. Of Pages 160
Edition 2013
Format Paperback
Language Hindi
Price रु 150.00
Discount(%) 0.00
Quantity
Discount
Buy More, Save More!
Minimum 10% discount on all orders
15% discount if the order amount is over Rs. 8000
20% discount if the order amount is over Rs. 25,000
635253230823093031.jpg 635253230823093031.jpg 635253230823093031.jpg
 

Description

दलित करोड़पति, 15 प्रेरणादायक कहानियाँ

मिलिंद खांडेकर

टाटा, बिड़ला और अंबानी की औद्योगिक सफलताओं के यशोगान से भरी चमचमाती कॉफी टेबल बुक्स के जरिए उद्यम की सफलता जानने की आदत के बीच लगभग झिंझोड़कर जगा देने वाली एक किताब आई है- दलित करोड़पति। पत्रकार मिलिंद खांडेकर की ये किताब ग़रीबी और शोषण की अंधेरी सुरंगों से निकल कर चमचमाते कॉर्पोरेट गलियारों तक पहुँचने वाले 15 उद्यमियों की कहानी है।

सादा-सा कवर और 155 पृष्ठों वाली पुस्तक जब आप हाथ में उठाते हैं तो उसमें छपी चौंकाने वाली कहानियों का आपको अंदाज़ा नहीं होता, पर जब आप इसे पढ़ते जाते हैं तो आख़िर में ये आपको भारत में दलित होने के साथ करोड़पति भी होने की असलियत को लेकर झिंझोड़ चुकी होती है।

मिलिंद खांडेकर की ये पुस्तक दरअसल हौसले, जीवट और सफलता के उतार-चढ़ावों से गुजरती कहानियों का बायस्कोप है। एक ऐसा बायस्कोप जो न केवल 15 दलित करोड़पतियों की प्रेरणास्पद कहानियाँ आप तक पहुँचाता है बल्कि लाइसेंस राज से ख़ुली अर्थव्यवस्था में प्रवेश करने वाले हिंदुस्तान की भी सैर कराता है। बायस्कोप रूबरू करवाता है आपको उन दिक्कतों से, उन परेशानियों से, कोयले, पेट्रोल और गन्ने की नीतियों से उपजी पेचीदगियों से और इनसे जूझकर अपनी सफलता की कहानी लिख रहे हिंदुस्तान से। ये बायस्कोप आपको अनजाने में ही देश की उद्योग नगरियों- मुंबई, अहमदाबाद, भावनगर, लुधियाना, पानीपत और आगरा से लेकर पटना और चेन्नई तक की यात्रा भी करवा लाता है। आपको पता चलता है कि देश के औद्योगिक नक्शे पर इन शहरों की ख़ासियत क्या है और परेशानियाँ क्या हैं।

ग़रीबी से अमीरी तक, फर्श से अर्श तक और रंक से राजा तक का सफर तो यों भी संघर्ष और जीवट से भरा होता है और प्रेरित करता है, अगर ये ख़ुद तय किया हुआ रास्ता हो। पर मिलिंद खांडेकर की पेंगुइन से प्रकाशित ताज़ा किताब- 'दलित करोड़पति, 15 प्रेरणादायक कहानियाँ' में सफलता का शिखर छूने वाले इन किरदारों का दलित होना इस यात्रा को और ख़ास बना देता है। दूर से देखने पर हमें यही लग सकता है कि कारोबार जमाने में तो सभी को दिक्कत आती है फिर क्या दलित और क्या सामान्य जाति। पर जब हम पढ़ते हैं कि कैसे लुधियाना के मलकित चंद को कच्चा माल केवल इसलिए महँगा मिला क्योंकि वो दलित हैं, कैसे सविता बेन कोलसावाला को सवर्णों की बस्ती में रहने की सजा उनका घर जलाकर दी गई और कैसे भगवान गवई और जेएस फुलिया के साथ नौकरी में केवल जाति की वजह से भेदभाव हुआ तब हमें दलित होने की दिक्कतों का थोड़ा अंदाज़ा हो पाता है।

किताब के पहले ही अध्याय में दिए गए अशोक खेड़ा के इस किस्से में भारत में गाँवों में दलितों की उस समय की स्थिति और इस किताब में वर्णित सफलता की तस्वीर और विरोधाभास एक साथ उभरकर आ जाता है -"आज वो (अशोक खेड़ा) उसी पेड गाँव में बीएमडब्ल्यू गाड़ी से जाते हैं, जहाँ कोई 40 साल पहले उनके पैर में पहनने के लिए चप्पल नहीं थी। उन्होंने वो ज्यादातर ख़ेत ख़रीद लिए हैं जहाँ कभी उनकी माँ बारह आने रोज़ पर मज़दूरी करती थी। वो कहते हैं "गाँव में छुआछूत थी। हमें पानी ऊपर से पिलाते थे। भाकरी ऊपर से फेंककर देते थे।"

सफलता की ये सभी 15 कहानियाँ अपने आप में सुख-दु:ख, उतार-चढ़ाव और संघर्ष के तमाम रंग समेटे हुए हैं। इनमें से हर एक पर पूरी फिल्म बन सकती है। 10 बाय 10 की खोली से बड़े बंगलों तक पहुँचने के ये किस्से मामूली नहीं हैं। हर कहानी पूरी फिल्म की तरह आपकी आँख के सामने घूम जाती हैं। मुंबई के बैलार्ड एस्टेट में कमानी ट्यूब्स के दफ्तर में बैठी कल्पना सरोज हों या आगरा के कोटा ट्‍यूटोरियल के हर्ष भास्कर हों- सबकी कहानी फ्लैश बैक के रूप में पड़ाव-दर-पड़ाव दिमाग में चित्र बनाने लगती है। सच्ची कहानियों को इस किस्सागोई के साथ बयान करने से इन्हें पढ़ना दिलचस्प हो गया है। साथ ही मिलिंद खांडेकर का लंबा पत्रकारीय अनुभव भी तब परिलक्षित होता है जब आपको हर किस्से से जुड़े संदर्भ, तथ्य, उस समय की राजनीतिक पृष्ठभूमि और नीतियों से जुड़ी दिक्कतें भी पढ़ने को मिल जाती हैं।

किताब के ज़रिए एक और दिलचस्प पहलू ये पता चलता है कि एक ओर तो इन किरदारों को दलित होने की वजह से दिक्कत आई, संघर्ष करना पड़ा दूसरी ओर ये भी हुआ कि पैसे के कारण ही लोग ये भूल गए कि वो एक दलित से व्यापार कर रहे हैं। जब मलकित सिंह या रतिलाल मकवाना ने अपना माल सस्ते में बेचा तो तरकीब काम कर गई। लोगों ने व्यापार में अपना मुनाफा देखा, जाति नहीं। क्या पैसे की सचमुच कोई जाति होती है?


 

Subjects

You may also like
  • Mahashakti Bharat [Hindi Translation Of Mission India]
    Price: रु 125.00
  • Jyotipunj [Hindi Translation]
    Price: रु 400.00
  • Bharat 2020: Navnirman Ki Rooprekha
    Price: रु 225.00
  • Is New York Burning? (Hindi Translation)
    Price: रु 195.00
  • Ek Romanchak Soviet Russia Yatra (Hindi Translation Of Once Upon A Time In The Soviet Union)
    Price: रु 150.00
  • Garibi Ka Vaishvikaran (Hindi Translation Of The Globalization Of Poverty)
    Price: रु 250.00
  • Ek Gumshuda Aurat Ki Diary (Hindi Translation Of The Woman Destroyed)
    Price: रु 150.00
  • Headley Aur Mein (Hindi Translation of Headley and I)
    Price: रु 199.00
  • Netaji Rahasya Gatha (Hindi Translation of Indias Biggest Cover Up)
    Price: रु 350.00
  • Sachitra Khel Niyam
    Price: रु 295.00
  • Vishwa Prasiddh Ansuljhe Rahasya
    Price: रु 100.00
  • Tantra Ke Naye Prayogo Se 90 Crore Ki Barsat
    Price: रु 160.00