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Tuesdays With Morrie (Hindi Translation)
Mitch Albom
Author Mitch Albom
Publisher Zondervan
ISBN 9788183220583
No. Of Pages 220
Edition 2010
Format Paperback
Language Hindi
Price रु 125.00
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Description

हर मंगल मॉरी के संग

मिच एल्बम

'Tuesdays With Morrie' - Hindi Translation

जब आप युवा थे, तब आपके जीवन में कोई ऐसा बुद्धिमान व्यक्ति आया होगा, जिसने दुनिया को समझने में आपकी मदद की होगी और ज़िंदगी की मुश्किल राहों पर आपका सही मार्गदर्शन किया होगा। शायद कोई बुज़ुर्ग, शिक्षक या फिर साथी।

लेखक मिच एल्बम के जीवन में भी यही हुआ था, जब कॉलेज में पढ़ते समय उनके प्रोफ़ेसर मॉरी श्वार्टज़ ने उन्हें जीवन के गुरु सिखाए थे। उस बात को बीस साल बीत चुके थे और मिच एल्बम उनका पता-ठिकाना खो चुके थे। शायद मिच की तरह ही आप भी बीते दिनों के उस मार्गदर्शक का पता-ठिकाना खो चुके होंगे। क्या आप दोबारा उस व्यक्ति से नहीं मिलना चाहेंगे, जो आपको उन्हीं दिनों की तरह आपके यक्षप्रश्नों के सही जवाब देने में मदद करे ?

मिच एल्बम को यह दूसरा मौक़ा मिला था कि वे अपने बूढ़े प्रोफ़ेसर के जीवन के आख़िरी दिनों में उन्हें खोज निकालें। उनके बीच का यह फिर से जुड़ा रिश्ता एक अंतिम ‘क्लास’ में बदल गया : सबक़ ज़िंदगी का। ‘हर मंगल मॉरी के संग’ दोनों के साथ गुज़ारे गए उन्हीं यादगार लमहों का रोचक, मर्मस्पर्शी और जीवंत दस्तावेज़ है।

 

मेरे बूढ़े प्रोफ़ेसर के जीवन की अंतिम क्लास हफ़्ते में एक दिन उनके घर पर लगती थी। उनके स्टडी रूम में खिड़की के पास, जहाँ से वे जासवंती की गुलाबी पत्तियों को एक-एक कर झरते हुए देख सकते थे। क्लास का दिन भी तय था, मंगलवार। नाश्ते के बाद शुरू होने वाली क्लास का विषय होता था-ज़िंदगी के मायने। यहाँ शिक्षा, अनुभवों के माध्यम से दी जाती थी।
 
इसके लिए कोई ग्रेड नहीं दिया जाता था परंतु हर हफ़्ते मौखिक परीक्षा होती थी। आपसे सवालों के जवाब देने और मन में उठे कुछ सवाल करने की अपेक्षा की जाती थी। हाँ बीच-बीच में कुछ सेवा भी करनी पड़ती थी। जैसे प्रोफ़ेसर का सिर तक़िये पर आराम से रखना या उनका चश्मा नाक पर अच्छे से जमाना वगैरह-वगैरह। विदा लेते वक़्त उनको चूमना आपको अतिरिक्त अंक दिला देता था।
 
कोई पुस्तक नहीं होती थी, फिर भी ढेर सारे विषयों पर चर्चा हो जाती थी। प्रेम, कामकाज, समाज, परिवार, बुढ़ापा, क्षमादान और अंत में मौत का भी ज़िक्र होता था। अंतिम लेक्चर छोटा सा था, यूँ समझिए कि बस चंद शब्द।
शिक्षा पूरी होने के एवज में अंतिम संस्कार आयोजित किया गया। हालाँकि अंतिम परीक्षा तो नहीं हुई थी, फिर भी जो कुछ सीखा उस पर एक लंबा लेख तैयार करने की उम्मीद की जाती थी। वही यहाँ प्रस्तुत है।
मेरे बूढ़े प्रोफ़ेसर के जीवन की अंतिम क्लास में केवल एक छात्र मौजूद था और वह छात्र मैं ही था।
1979 की बसंत ऋतु में शनिवार की एक गर्म और चिपचिपी दोपहर थी। हम सैकड़ों की संख्या में मुख्य कैम्पस के बगीचे में लकड़ी की फ़ोल्डिंग कुर्सियों पर अगल-बग़ल बैठे हुए थे। हमने नायलॉन के नीले लबादे पहन रखे थे। वहाँ हमने लंबे भाषणों को अधीरता के साथ सुना। समारोह ख़त्म होते ही हमने टोपियाँ हवा में उछाल दीं। आख़िर हम वालथम, मेसाच्यूसेट्स की ब्रैंडीस यूनिवर्सिटी की सीनियर क्लास से निकलकर स्नातक जो हो गए थे। हममें से कई लोगों के लिए यह बचपन का आख़िरी दिन था।
बाद में, मैंने अपने पसंदीदा प्रोफ़ेसर मॉरी श्वार्ट्ज़ को खोजकर अपने माता-पिता से मिलवाया। प्रोफ़ेसर क़द-काठी से ठिगने ही थे। छोटे-छोटे डग लेते ऐसे लगते थे, मानो तेज़ हवा का कोई झोंका उन्हें उड़ाकर बादलों में ले जाएगा। स्नातक समारोह की ड्रेस में वह बाइबल में वर्णित किसी फ़रिश्ते और क्रिसमस के देवता का मिला-जुला रूप लग रहे थे। उनकी नीली-हरी दमकती हुई आँखें, माथे पर चाँदी जैसे बाल, बड़े-बड़े कान, तिकोनी नाक और भौंह पर धूसर बालों के गुच्छे सब कुछ प्रभावकारी था। हालाँकि उनके दाँत टेढ़े-मेढ़े थे और निचले दाँत तो भीतर की ओर ऐसे झुके हुए थे, मानो किसी ने घूँसा जमाया हो। लेकिन मुस्कान ऐसी, जैसे अभी-अभी आपने उन्हें दुनिया का पहला चुटकुला सुनाया हो।
उन्होंने मेरे माता-पिता को बताया कि कैसे मैं उनकी हर क्लास में मौजूद रहता था। जब उन्होंने कहा, ‘‘आपका बेटा कुछ ख़ास है।’’ तो मैं शरमाकर पैरों की तरफ़ देखने लगा। विदा लेने से पहले मैंने प्रोफ़ेसर को तोहफ़ा दिया। एक ऐसा भूरा, ब्रीफ़केस, जिस पर उनके नाम के पहले अक्षर अंकित थे। मैंने एक दिन पहले ही उसे शॉपिंग मॉल से ख़रीदा था। मैं उन्हें भूलना नहीं चाहता था। या यूँ कह लें कि मैं यह नहीं चाहता था कि वे मुझे भुला दें।
उन्होंने ब्रीफ़केस की प्रशंसा करते हुए कहा, ‘‘मिच, तुम बहुत अच्छे हो।’’ फिर उन्होंने मुझे गले लगा लिया। उनकी पतली बाँहों को मैंने पीठ पर महसूस किया। मेरा क़द उनसे ज़्यादा था और जब उन्होंने मुझे गले लगाया, तो मुझे कुछ अटपटा सा लगा। मानो मैं बुज़ुर्ग हूँ और वह कोई छोटा बच्चा।
उन्होंने पूछा कि क्या मैं उनसे संपर्क बनाए रखूँगा, मैंने बेहिचक कहा, ‘‘निःसंदेह।’’
जब वे पीछे हटे, तो मैंने देखा कि वह रो रहे थे।

 

 

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