Shabar Mantra (Durlabh Gopniya Mantro Ki Jankari) By Ramesh Dwivedi
शाबर मंत्र - पं. रमेश द्रिवेदी प्राचीन लोकमान्यता के अनुसार ' शबर ऋषि ' द्वारा प्रणीत सभी मंत्र ' शाबर मंत्र 'कहलाते है। शबर ऋषि किस काल में हुए? शाबर मंत्रों का प्रचलन कब से प्रारंभ हुआ यह बताना मुश्किल है। इन मंत्रो की सबसे बड़ी विशेषता यह है की इसमे संस्कृत के ज्ञान की आवश्यकता नहीं है। शाबर मंत्र में विनियोग, न्याय छंद ऋषि वगैरह नहीं होते। इन मंत्रो में व्यकित की इष्ट साधना व् गुरु की शकित प्रधान होती है। गुरु की कृपा एव गुरु मुख से गृहीत किए बिना शाबर मंत्र सिद्ध नहीं होते। शाबर मंत्रो में साधक को स्वय की साधना भकित पर स्वाभिमान विशेष होता है। जिसको साधक गुरु की शकित के साथ जोड़ देता है, तथा गुरु कृपा का सहारा पग - पग पर लेता है।
पं. रमेश द्रिवेदी संस्कृत के महान पंडित एव वास्तु मार्तंड है। इनकी प्रतिभा और ज्ञान की कोई सीमा नहीं है। विविध विषयों के धनि पं. रमेश द्रिवेदी संस्कृत - साहित्य से एम.इ. करने के पश्चात पुस्तक लेखन के क्षेत्र में कदम रखे,जिसके फलस्वरूप अनेक दुर्लभ-दुष्प्राप्य पांडुलिपियां आज पुस्तक के रूप में सामान्य पाठको के लिए प्रकाशित हो रही हैं।