समग्र कहानियाँ - भाग 2 हम दोनों-मैं और रीमा-अभी-अभी मिसेज़ शर्मा से मिलकर लौटे थे। जब हम गए थे तो वह अकेली नहीं थीं। बाहर लान में ही चारपाई बिछाकर बैठी हुई थीं। उनके आस-पास ऊन की गुच्छियाँ, कुछ बुने–अधबुने स्वेटर कुछ पैटर्न बुक्स और दूसरी पत्रिकाएं बिखरी पड़ी थीं। तीन कुर्सियों पर तीन संभ्रान्त महिलाएं बैठी थीं। उनके मध्य में एक तिपाई पड़ी थी जिस पर चाय के खाली कप पड़े थे। साथ में एक फुल-प्लेट थी। जिसमें थोड़ा-सा चिउड़ा और मूंगफली के दानों का मिक्सचर पड़ा हुआ था। वह पूरी प्लेट में इस प्रकार बिखरा हुआ था जैसे खानेवाले हाथों में से छूट-छूटकर गिरा हो। शुरू में प्लेट अवश्य भरी हुई होगी। पर वही बचा था जो उँगलियों से उठाया न जा सका हो। दूसरी ओर एक छोटी मेज पर स्वेटर बुनने की जापानी मशीन पर एक लड़की काम कर रही थी । और सारे लान में बिखरे-बिखरे कुछ बच्चे खेल रहे थे कि मि० शर्मा की छोटी लड़की पल्लव भी उनमें थी। शेष बच्चे या तो वहाँ बैठी हुई उन संभ्रान्त महिलाओं के थे, या आस-पड़ोस से आए हुए होंगे।