Safal Jeevan Ki Rahe by Rajendra Garg
दुनिया में करीब -करीब हर आदमी अपनी विफलताओं से ,दूसरों की स्वार्थपरता से, रिश्तेदारों के एहसान - फ़रामोशी से और पड़ोसियों की धोखेबाजी से जल - भुना बैठा है और उसे लगता है की हसी - ख़ुशी के बजाय यह जिंदगी रोते - झींकते ही निकलती जा रही है। किसी से थोड़ी सी हमदर्दी दिखा दीजिए , वह आपके सामने अपनी जिंदगी की पीडाओ और कुढ़ाओ का महाकाव्य खोलकर रख देगा -किस तरह लोगों ने उसकी मदद ली और बदले में बदनामी की कैसे-कैसे नाशुके जहरीले लोगो ने उसकी सहायता से तरक्की की और आखिर उसी को डस लिया , किस तरह ऐसे -वैसे लोग आज कैसे -कैसे बन गए और पुराने उपकार भूल गए है।
कोई निराशा के गहरे गर्त में पड़ा है और देख रहा है की जिंदगी का जुलूस उसे बहुत पीछे छोड़ गया है, कोई इस बात से खिन्न है की बिलकुल ही आयोग्य लोग शिखर पर जा पहुंचे है और वह पूरी योगयता रखते हुए भी निचे खड़ा रह गया है। कोई अकेलेपन की स्वनिर्मित कैद में पड़ा तनाव ,डिप्रेसन एव आत्मग्लानि के दलदल में छटपटा रहा है। सभी अपनी विफलताओं और हताशाओ के लिए दुसरो को दोष दे रहे है।
यह पुस्तक आपको बताती है की दुनिया में एक ही आदमी आपको दुखी और असफल बना सकता है ---आप स्वय। दुःख ,भय,पश्चाताप और नाउम्मीदी सिर्फ आपकी आदते है,परिस्थितियां नहीं। सभी को दिन में चौबीस घण्टे और जीवन में 70-80 वर्ष ही मिलते है लेकिन कोई सूर्य की तरह आसमान से जगमगाकर पृथवी को आलोकित कर देता है और कोई हाथ माल्ता रह जाता है। यह पुस्तक बताती है -सुख -दुख एव सफलता - विफलता क्यों और कैसे प्रापत होती है ?