Puran Bhakti Granth (Set of 21 Hindi Books) by Dr.Vinay ब्रह्मवैवर्त’ का अर्थ है ब्रह्मा का विवृत अर्थात ब्रह्मा का परिमाण। ब्रह्मा की विवृत ‘प्रकृति’ है। ब्रह्मवैवर्तपुराण में प्रकृति के विविध परिमाणों का ही प्रतिपादन किया गया है। श्रीमद् भागवत पुराण के बाद इस पुराण में भी भगवान् विष्णु के श्रीकृष्णावतार का विस्तृत विवेचन किया गया है। इस पुराण में भगवान् श्रीकृष्ण को परब्रह्म स्वरूप कहा गया है, जिनके अंश से यह सम्पूर्ण सृष्टि उत्पन्न होती है। ब्रह्मवैवर्त पुराण भोगी मनुष्यों के लिए भोग और मोक्ष के अभिलाषी मनुष्यों के लिए मोक्ष प्रदान करने वाला है। विष्णु-भक्तों के लिए यह पुराण भक्तिप्रदायक और कल्पवृक्ष के समान है। इस पुराण में संसार के बीज रूप का निरूपण किया गया है, जिसकी सभी योगी-संत ध्यान और आराधना करते हैं। इसके अतिरिक्त सृष्टि की उत्पत्ति, प्रमुख देवियों – दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, गायत्री, सावित्री, तुलसी, गंगाआदि︎ के चरित्रों, भगवान् गणेश के जन्म और उनसे संबंधित पौराणिक कथाओं तथा भगवान् श्रीकृष्ण से संबंधित विभिन्न लीलाओं का वर्णन किया गया है।