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Mein Kyon Aaya Tha
Osho
Author Osho
Publisher Diamond Books
ISBN 9789350833063
No. Of Pages 300
Edition 2013
Format Paperback
Language Hindi
Price रु 200.00
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Description

मैं क्यों आया था

संपादक : शशिकांत सदैव

आचार्य रजनीश के नाम से विख्यात रहे प्रसिद्ध दार्शनिक ओशो ने सबसे बडा काम यह किया कि उन्होंने दर्शन और अध्यात्म से आम आदमी को जोडा और उसे सचमुच में मनुष्य बनना सिखाया। ओशन से ही उन्हें नाम मिला ओशो। वास्तव में वे समुद्र की भांति ही थे। उनके अंतस में सुलझे हुए विचारों के इतने रत्न छिपे हुए थे, जितने समुद्र में होते हैं, लेकिन उन्होंने उन रत्नों को लोगों का जीवन संवारने के लिए बांट दिया। वह विवादित भी रहे, लेकिन ये विवाद उन लोगों ने पैदा किए, जिन्होंने ओशो को नहींसुना-पढा था। उन्होंने केवल ओशो की बातों को रूढ अर्र्थो में लिया, उसके मर्म को उन्होंने नहींछुआ, जबकि ओशो का सबसे बडा योगदान यह है कि उन्होंने जटिल से जटिल दार्शनिक सिद्धांत को भी सामान्य जनों को अत्यंत सरलता से आज के प्रतीकों और दृष्टांतों के जरिये सिखा दिया। यह अद्वितीय है। शायद ही कोई विषय ऐसा होगा, जिसका ओशो ने तार-तार विश्लेषण न किया हो। उनके प्रवचनों को चुनकर शशिकांत सदैव ने उसे पुस्तकाकार दिया है - मैं क्यों आया था के नाम से। शशिकांत आध्यात्मिक पत्रकारिता से जुडे हुए हैं और स्वयं भी एक चिंतक है। इस पुस्तक के रूप में ओशो के चिंतन-सागर में गोता लगाकर वह प्रमुख विषयों के मोती चुनकर लाए हैं। उन्होंने उन्हीं विषयों का चयन किया है, जो आम इंसान के जीवन में उपयोगी हैं, जिनके बीच रहकर वह बनता-बिगडता है। इसीलिए सदैव ने जन्म, मृत्यु, जीवन, संबंध, प्रेम, विवाह, समाज, स्त्री, पुरुष, मनोविज्ञान, आत्मा, परमात्मा, ध्यान, सेक्स आदि विषयों को चुना है, ताकि जीवन से संबंधित लोगों के भ्रम दूर हो सकें। यह पुस्तक यह भी बताती है कि ओशो ने मानव जीवन के लिए कितना कुछ अलग और नया किया है। पुस्तक के प्रारंभ में सदैव की कविता एक निमंत्रण हूं बहता-सा ओशो के दर्शन के मूल तत्व को गहराई से प्रस्तुत करती है, वहीं अंतिम खंड में उन्होंने एक लेख भी लिखा है, जिससे ओशो के बारे में जाना-समझा जा सकता है। कुल मिलाकर, यह पुस्तक ओशो की अमृतवाणी से समग्र रूप से जुडने का अवसर देती है। पुस्तक की टैग लाइन ही है- क्या कह गए और क्या कर गए ओशो। ओशो का उद्देश्य था लोगों की चेतना को जगाना। यदि यह पुस्तक किसी की चेतना को ऊ‌र्ध्वमुखी कर सके तो इसकी सार्थकता होगी।

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