Kuch Aur Nazmein by Gulzar कुछ और नज्में– गुलजार गुलजार के गीत हिंदी फिल्मों की गीत परंपरा में अपनी पहचान खुद हैं, प्रकृति के साथ उनके कवि का जैसा अनौपचारिक और घरेलू रिश्ता है, वैसा और कहीं नहीं मिलता। जितने अधिकार से गुलजार कुदरत से अपने कथ्य और मंतव्य के संप्रेषण का काम लेते रहे है, वैसा और भी कोई रचनाकार नहीं कर पाया है। न फिल्मों में और न ही साहित्य में। इस किताब में वे नज्में शामिल हैं जिनमें से ज्यादातर को आप इस किताब में ही पढ़ सकते हैं, यानी कि ये गीतों के रूप में फिल्मों के मार्फत आप तक सभी नहीं पहुँचीं। इसमें गुलजार की कुछ लम्बी नज्में भी शामिल हैं, कुछ छोटी और कुछ बहुत छोटी जिन्हें उन्होंने ‘त्रिवेणी’ नाम दिया है। इनको पढ़ना एक अलग ही तजुर्बा है। मेरा किताब से लगाव नहीं जाता। शुरू-शुरू में जब किताबें छपी थीं तो बड़ी तसल्ली होती थी कि कापियों, डायरियों और काग़जों के पुरज़ों पर लिखी नज़्में किसी मंजिल को पहुँच गईं। किताब तक पहुँचते ही लगता था नज़्में अपने घर पहुँच गईं। फिर जैसे आदमी घर बदलता है, कुछ नज़्में भी अपना घर बदलने लगीं। एक किताब से वह के दूसरी किताब में चली गईं। मैं एक किताब, दूसरी किताब में इसलिए उँड़ेलता रहा कि वक़्त के साथ-साथ नज़्में मेरे ज़ेहन में बार-बार छनती रहीं। शुरू-शुरू में ज़्यादा कह जाता था। वक़्त के साथ समझ में आया कि कम कहने में ज़्यादा तास्सुर है। ज़्यादा कहने से मानी डाइल्यूट हो जाते हैं। ‘जानम’ अपना पहला मजमूआ, देवनागरी में देखने के लिए ‘एक बूँद चाँद’ छपी। जब वो छनी तो मोटा पीसा हुआ निकल गया और बाक़ी माँदा अगली किताब में उँड़ेल दिया। ‘कुछ और नज़्में’— अशोक माहेश्वरी वो फिर से छापना चाहते हैं। हालाँकि इसमें बहुत-सी नज़्में हैं जिन्हें मैं फिर से छानना चाहता हूँ। मगर वो मना करते हैं। बस कीजिए, सब मैदा हो जाएगा। आपकी मर्जी....अब मैदा हो कि मलीदा, हाज़िर है।