Kohre Mein Kilkari (Navalkatha) By Karuna Pandey कोहरे मैं किलकारी - डॉ करुणा पांडे वह सोच रही थी - जिंदगी के संविधान को,की हर क्षण जो आया है,वह उसके बाद दुबारा लौटकर नहीं आता। उस क्षण का फैसला और आनंद तभी लेना पड़ता है ,जब तक वह सामने है। इस दुनिया में हर बूढ़े होते व्यक्ति के साथ बच्चो का होना बहुत ज़रूरी है,क्योंकि इस समय तक व्यक्ति के खुद के सपने खत्म हो गए होते है। संयुक्त परिवार में कोई अवसादग्रस्त नहीं होता,क्योंकि वहां सपने पीढ़ी दर पीढ़ी आँखों के सामने तैरते रहते है और व्यक्ति अकेला नहीं होता ।