Khatre Mein Bharat (Hindi Translation Of India At Risk)
ख़तरे में भारत: सुरक्षा की नीतिगत भूलें व भ्रांतियां आज़ादी के छियासठ सालों के अनुभव का विश्लेषण हमें बताया है कि भारत अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा की राह में मिलने वाली बाहरी और आंतरिक चुनौतियों का समुचित रूप से सामना करने में नाकाम रहा है। जहां चुनौतियों का दायरा काफी व्यापक और विस्तृत रहा है, वहीं उसकी तुलना में हमारी प्रतिक्रिया लगातार सीमित रही है। इस पुस्तक में जसवंत सिंह सवाल उठाते हैं कि ‘ऐसा क्यों?’ क्या वैचारिक भूपटल में भ्रंश या शासन व्यवस्था में निहित दोषों के कारण यह स्थिति बनी है? उनका मानना है कि इन दोनों को मिलाकर ही उनके सवाल का जवाब पूरा होता है। इस बात को पुष्ट करने के लिए ही उन्होंने इस पुस्तक में स्वतंत्र भारत में भरोसेमंद रक्षा नीति और सुरक्षा व्यवस्था का लक्ष्य हासिल करने में मिलने वाली चुनौतियों, उन्हें हल करने की दिशा में उठाए गए कदम और की गई प्रतिक्रियाओं की बड़ी दक्षता के साथ स्पष्ट विवेचना की है। पिछले साढ़े छह दशकों के दौरान लंबे समय तक जसवंत सिंह ने अपने आधिकारिक पद से देश की विभिन्न सुरक्षा संबंधी चुनौतियों का सामना किया और कई बार स्वयं महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई और प्रबंधन की ज़िम्मेदारी भी उठाई। इन सबसे देश की सुरक्षा के तमाम पहलुओं और उनसे जुड़े मुद्दों को गहराई से समझने का उन्हें मौका मिला। उनके अपने इन्हीं अनुभवों पर आधारित है यह पुस्तक जिसमें देश की सुरक्षा संबंधी सोच, नीतियां, उनके परिणामों और विशेषकर विफलताओं की व्यापक और निष्पक्ष जानकारी है।