Kenopnishad Chintan by Swami Anubhavanand केनोपनिषद् सामवेदीय तलवकार ब्राह्माण के अन्तर्गत है। इसमें आरम्भ से लेकर अन्तपर्यन्त सर्वप्रेरक प्रभुके ही स्वरूप और प्रभाव का वर्णन किया गया है। पहले दो खण्डों में सर्वाधिष्ठान परब्रह्मके पारमार्थिक स्वरूप का लक्षण से निर्देश करते हुए परमार्थज्ञान की अनिर्वचनीयता तथा ज्ञेयके साथ उसका अभेद प्रदर्शित किया है। इसके पश्चात् तीसरे और चौथे खण्ड में यक्षोपाख्यान द्वारा भगवान् का सर्वप्रेरकत्व और सर्वकर्तृत्व दिखलाया गया है। इसकी वर्णनशैली बड़ी ही उदात्त और गम्भीर है। मन्त्रों के पाठमात्र से ही हृदय एक अपूर्व मस्तीका अनुभव करने लगता है। भगवती श्रुतिकी महिमा अथवा वर्णनशैली के सम्बन्ध में कुछ भी कहना सूर्यको दीपक दिखाना है।