Gayab Hota Desh by Ranendra पत्रकार किशन विद्रोही की हत्या कर दी गई! लेकिन न कोई चश्मदीद गवाह है न कोई सबूत, जिससे कहा जा सके कि यह हत्या ही है। लाश मिली नहीं है। बस खून में सना तीर और बिस्तर पर खून के गहरे धब्बे ही बचे हैं। इस हत्या के पीछे उस शहर का इतिहास छिपा है, जहां नोटों से भरी थैलियों और ताकत के बल पर आदिवासी टोले गायब होते रहे। उनकी जमीन छीनी जाती रही, उनके गांव उजाड़े जाते रहे। इस शहर के इतिहास जितना ही पुराना है आदिवासी जमीन की लूट का इतिहास। इसका विरोध करने वाले परमेश्वर पाहन जैसे लोग अपनी जिंदगी की कीमत चुकाते रहे और लूट के दम पर फैलता रियल एस्टेट का साम्राज्य एक सम्मानित धंधा बन गया. जितनी उसकी लालच बढ़ती गई उतनी ही उसकी ताकत, उसका पाखंड, उसकी नृशंसता और निर्ममता. लेकिन नीरज पाहन, सोनमनी बोदरा, अनुजा पाहन, रमा पोद्दार जैसे लोगों की जिद है कि वे अमानवीयता के इस साम्राज्य से लड़ेंगे. वे किशन विद्रोही उर्फ के.के. झा नहीं हैं जो टूट जाएं, बदल जाएं, समझौते कर लें. शहर पहले एक राज्य में तब्दील होता है और राज्य देश में और देश पूरी दुनिया में. लेकिन इसी बीच अपनी जमीनों से उजाड़ दिए गए लोग पाते हैं कि उनका देश गायब होता जा रहा है और वे एक ऐसी जमीन के निवासी हैं, जो दुनिया में कहीं नहीं है. मिथकीय लेमुरिया द्वीपों की तरह. वे फिर से कब हासिल करेंगे, अपने गायब होते देश को? रणेन्द्र का पहला उपन्यास ग्लोबल गांव के देवता चर्चित रहा था। उनकी कहानियों का संग्रह रात बाकी और अन्य कहानियां तथा कविताओं का संग्रह थोड़ा सा स्त्री होना चाहता हूं नाम से प्रकाशित है।