दशमहाविधा रहस्यम् Dus Mahavidhya Rahasyam (Hindi) by Pandit Kishanlal Sharma शक्ति की आराधना किसी न किसी रूप में समूचे विश्व में प्रचलित है। जगन्माता की परंपरागत सामान्य अर्चना के अतिरिक्त भारतीय मनीषियों ने सृष्टि के मूल कारण ब्रभ्तत्व का विवेचन करते समय'शक्ति' की अत्यंत गुह्य एव अनिर्वचनीय तत्व के रूप में व्याख्या की है। जिसका वर्णन वैदिक और तंत्र-ग्रंथो में एक समान मिलता है। 'शक्ति के बिना शिव शव के समान होता है' -इस बात को ग्रंथो में तरह-तरह से कहना यह सिद्ध करता है की शक्ति के बिना शिव की सार्थकता न के सामान है। क्रिया शक्ति के बिना शिव शव ही तो है। देवी महाभागवत पुराण के अनुशार दक्ष की पुत्री सती को ही महाविधा के नाम से संबोधित किया गया है। पिता के यज्ञमें जाने के लिए जब सती को शिव ने मना किया, तो वह क्रोधित हो उठी। सती के उस रूप को देखकर शिव भयभीत हो गए और भागे। तब उनहे दसो दिशाओं में सती के जो दस विग्रह दिखाई दिए, वही दशमहाविधाए है। इन दशमहाविधाओ की साधना-उपासना करने से धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है तथा मारण, उच्चाटन, क्षोभ, मोहन, द्रावण, वशीकरण, स्तंभन, विद्रेषण एव अभीष्ट प्राप्ति के प्रयोग किए जा सकते है।