महर्षि पराशर कृत बृहत् पराशर होरा शास्त्रम्
Brihat Parashar Hora Shashtram (Part 1 & 2) by Maharshi Parashar
वैदिक ज्योतिष शास्त्र में जिस पद्धति को सबसे ज्यादा महत्व दिया जाता है वह पराशरीय पद्धति है। पराशरीय पद्धति मूल रुप से ज्योतिष के सुप्रसिद्ध ग्रन्थ “बृहद पराशर होरा शास्त्र” के सिद्धांतों पर चलता है। इस ग्रंथ के रचयिता महर्षि पराशर हैं और इसी कारण से इस पद्धति को पराशरीय पद्धति कहते हैं। “बृहद पराशर होरा शास्त्र” वैदिक ज्योतिष शास्त्र का एक अद्भुत ग्रन्थ है जिसके नियमो का अनुसरण ज्योतिष शास्त्र के लगभग सभी ग्रन्थ करते है और ज्योतिष में गणित व फलादेश सम्बन्धी सभी नियम उन्हीं की देन है।
पराशरीय पद्धति मूल रुप से ज्योतिष के सुप्रसिद्ध ग्रन्थ “बृहद पराशर होरा शास्त्र” के सिद्धांतों पर चलता है। इस ग्रंथ के रचयिता महर्षि पराशर हैं और इसी कारण से इस पद्धति को पराशरीय पद्धति कहते हैं।
“बृहद पराशर होरा शास्त्र” वैदिक ज्योतिष शास्त्र का एक अद्भुत ग्रन्थ है जिसके नियमो का अनुसरण ज्योतिष शास्त्र के लगभग सभी ग्रन्थ करते है और ज्योतिष में गणित व फलादेश सम्बन्धी सभी नियम उन्हीं की देन है।
राशियों में लिख दिया जाता है और इस प्रकार से जन्म कुण्डली बना ली जाती है।
''इस पद्धति के अनुसार''
जन्म कुंडली के बारह भाव होते है।
१ . पहला भाव व्यक्ति के शरीर और व्यवहार को दर्शाता है ।
२ . द्वितीय भाव धन व परिवार को ।
३ . तृतीय भाव भाई बहन व साहस ।
४ . चतुर्थ भाव चल अचल संपत्ति ।
५ . पंचम भाव विद्या, पूर्व पुण्य व संतान ।
६ . छठा भाव बीमारी, क़र्ज़ व शत्रु ।
७ . सप्तम भाव विवाह व विदेश यात्रा ।
८ . अष्टम भाव आयु ।
९ . नवम भाव भाग्य ।
१० . दशम भाव कार्य व व्यवसाय ।
११ . एकादश भाव उपलब्धिया व लाभ ।
१२ . द्वादश भाव हानि, अस्पताल, जेल व अंततः मोक्ष प्राप्ति को दर्शाता है.
जन्म कुण्डली में नौ ग्रह होते हैं --
१- सूर्य
२- चन्द्र
३-मंगल
४-बुध
५-गुरु
६-शुक्र
७-शनि
८-राहु
९- केतु
इनकी दशाओं क्रम इस प्रकार से है ----
१- सूर्य की छह वर्ष,
२- चन्द्र की दस वर्ष,
३-मंगल की सात वर्ष,
४-राहू की अट्ठारह वर्ष,
५- बृहस्पति की सोलह वर्ष ,
६-शनि की उन्नीस वर्ष,
७-बुध की सत्रह वर्ष,
८- केतु की सात वर्ष,
९-शुक्र की बीस वर्ष,
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