Bhagvati Mauj By Swami Anubhavanand
भागवती मौज - स्वामी अनुभवानंद
मौज में रहना और मौज को बांटना,यही जीवन का सार है । असल में मौज तो मौज ही होती है । और दुःख दुःख ही होता है । हम कोई न कोई बहाना चाहते है - मस्ती का या दुखड़े का । यदि यह निर्णय ले लिया जाय कि दुखी ही रहना है तो बहुत बहाने मिल जाते है । इसी प्रकार यदि मस्त रहने का निर्णय ले लेते है तो उसके लिये भी कारण ढूंढते है हम लोग । इसी भागवती मौज का सार हमें रास के रूप में मिलता है । यह दिव्य रास हमारे अपने अंदर भी है और अपने चारों ओर भी फैले जगत में भी , क्योंकि यह सारी सृष्टि कन्हैया की ही लीला है , उसी के रास का विलास है ।