अष्टावक्र गीता अष्टावक्र आठ अंगों से टेढ़े-मेढ़े पैदा होने वाले ऋषि थे। शरीर से जितने विचित्र थे, ज्ञान से उतने ही विलक्षण। उनके पिता कहोड़ ऋषि थे जो उछालक के शिष्य थे और उनके दामाद भी। कहोड़ अपनी पत्नी सुजाता के साथ उछालक के आश्रम में ही रहते थे। ऋषि कहोड़ वेदपाठी पंडित थे। वे रोज रात भर बैठ कर वेद पाठ किया करते थे। उनकी पत्नी सुजाता गर्भवती हुई। गर्भ में बालक जब कुछ बड़ा हुआ तो एक रात को गर्भ के भीतर से ही बोला, "हे पिता ! आप रात भर वेद पढ़ते हैं लेकिन आपका उच्चारण कभी शुद्ध नहीं होता। मैंने गर्भ में ही आपके प्रसाद से वेदों के सभी अंगों का ज्ञान प्राप्त कर लिया है।" गर्भस्थ बालक ने यह भी कहा कि रोज-रोज के पाठ मात्र से क्या लाभ। वे तो शब्द मात्र हैं। शब्दों में ज्ञान कहाँ? ज्ञान स्वयं में है। शब्दों में सत्य कहाँ? सत्य स्वयं में है