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Ank Vidya Jyotish (Numerology)
Gopesh Kumar Ojha
Author Gopesh Kumar Ojha
Publisher Motilal Banarasidas Prakashan
ISBN 9788120821194
No. Of Pages 185
Edition 2016
Format Paperback
Language Hindi
Price रु 125.00
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Description

Ank Vidya Jyotish (Numerology) by Gopesh Kumar Ojha



संसार में जो हम भिन्न-भिन्न वस्तुएँ देखते हैं, उनके अनेक रूप हैं। विविध रंगों से मिलने नये रंग बन जाते हैं। लाल और पीला मिलाने से नारंगी रंग बन जाता है। पीला और नीला मिलाने से हरा। इस प्रकार सैकड़ों, हजारों रंग बन सकते हैं, परन्तु इनके मूल में वही सातो रंग हैं जो इन्द्रधनुष में दिखाई देते हैं। इन सात रंगों के मूल में भी एक ही रंग रह जाता है जो सफेद है, किंवा रंगरहित शुद्ध प्रकाश है। सूर्य की प्रकाश रेखा को ‘प्रिज़्म’ में पार करने से सात रंग स्पष्ट दिखाई देते हैं। वैसे, सूर्य की किरण शुद्ध उज्ज्वल बिना रंग की प्रतीत होती है।

इसी प्रकार संसार की जो विभन्न वस्तुएँ हमें दिखाई देती हैं, उनमें पृथ्वी जल, अग्नि, वायु और आकाश तत्व है। उनमें तत्त्वों का सम्मिश्रण भिन्न-भिन्न प्रकार से है। किसी में कोई तत्त्व कम है, किसी में कोई अधिक परन्तु यह समस्त जगत् केवल पांच तत्त्वों का प्रपंच है। यह पांच तत्त्व भी केवल आकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से जल और जल से पृथ्वी। पृथ्वी का गुण ‘गन्ध’, जल का ‘रस’, अग्नि का ‘तेज’ (रूप), वायु का ‘स्पर्श’ और आकाश का गुण ‘शब्द’ है। जैसे संसार के सभी पदार्थों के मूल में आकाश तत्त्व है, उसी प्रकार हम यह कह सकते हैं कि संसार के सभी पदार्थों का गुण ‘शब्द’ है। इसी कारण शब्द को ‘शब्द-ब्रह्म’—अर्थात् परम प्रभु परमेश्वर का प्रतीक माना गया है।

परिणामगतः तो सब शब्द ब्रह्म के रूप ही हैं किन्तु भिन्न-भिन्न शब्दों का गुण और प्रभा भी भिन्न-भिन्न हैं और प्रत्येक शब्दों को अंक या संख्या में परिवर्तित कर उसकी माप की जा सकती है। कोई शब्द (या शब्दावली) 7000 बार आवृत्ति करने पर पूर्णता को प्राप्त होता है किसी का 17000 बार आवृत्ति करने पर परिपाक होता है। ‘संख्या’ और ‘शब्द’ के सम्बन्ध से हमारे ऋषि-महर्षि पूर्व परिचित थे, किसी कारण सूर्य के मंत्र का जप 7000 चन्द्रमा का 11000, तथा मंगल का 10000, बुद्ध का 9000, ब्रहस्पति का 19000, शुक्र का 16000, शनि का 23000, राहु का 18000 और केतु का 17000 जप निर्धारित किया है। किसी देवता के मंत्र में 22 अक्षर1 होते हैं तो किसी के मंत्र में 36। ‘शब्द’ संख्या का घनिष्ट वैज्ञानिक सम्बन्ध है।

इसी प्रकार संख्या और क्रिया का घनिष्ठ संम्बन्ध है। शून्य संख्या (0), निष्क्रिय निराकार, निर्विकार ब्रह्म’ का द्योतक है और ‘1’ पूर्ण ब्रह्म की उस स्थिति का द्योतक है, जब वह अद्वैत रूप से रहता है। कहने का तात्पर्य यह है कि ‘शब्द’ और संख्या (अंक) में सम्बन्ध होने के कारण-समस्त पदार्थों के मूल में जैसे ‘शब्द’ है

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