दादा-दादी की कहानियां हमारे देश में कथा-कहानियों की स्मृद्ध श्रृंखला के पीछे हमारा सामाजिक ताना-बाना तथा संयुक्त परिवारों का प्रचलन मुख्य कारण रहा है। हर पीढ़ी में बच्चे अपने घर के बड़े-बुजुर्गों, विशेषकर दादा-दादी के सान्निध्य में रहते और बढ़ते आए हैं। दादा या दादी द्वारा घर के नन्हें-मुन्नों व उनकी मित्रमंडली को कहानी-किस्से सुनाने का यह सिलसिला शाम ढलते ही शुरू हो जाता है। बच्चे इसमें कुछ इस कदर डूब जाते हैं कि खाने-पीने की सुध भी नहीं रहती-ऐसा चुम्बकीय आकर्षण होता है इन कहानियों में। बाद में इन्हीं कहानियों में कुफल या सुफल का समावेश हो गया, ताकि बच्चे मनोरंजन के साथ-साथ कुछ प्रेरणा भी ग्रहण कर सकें। दादा-दादी के मुख से निकलने वाली अधिकांश कहानियां हमारे प्राचीन भारतीय साहित्य का ही परिवर्तित स्वरूप हैं। धीरे-धीरे इसमें विश्व-प्रसिद्ध कथाओं का भी समावेश हो गया। बच्चों को नैतिक मूल्यों की शिक्षा देकर उनका आत्मिक व मानसिक विकास करने वाली ऐसी ही चुनिंदा कहानियों को पेश किया है हमने दादा-दादी की कहानियों के इस खजाने के रूप में।